श्री कृष्ण के उपदेश-Shree Krishna updesh in hindi
जब जब धरती पर पाप बड़ता है । धर्म की हानि होती है । तब तब मे आता हूँ ये तो आप सब जानते है । किंतु आपने सोच है । क्यो मे इस धरतल जीव बनकर ही आवतरित होता हूँ क्यू मैं मनुष्य के रुप में आपके बीच मे रहता हूँ । आज बत्ताता हूँ संसार मे पाप और पूण्य सन्तुलन मे चलते हैं । किंतु , जब पाप सीमा से आगे बढ जाता हैं । मुझे आना ही होता हैं कारण ।
कारण ये हैं कि आप मुझे भुला देते हो ।
चोकिये मत मे तो आप में ही बसता हूँ । बस आप स्वयं के भितर बस्से परमात्मा को भुलाने लगाते है । इस लिए मुझे आना पड़ता हैं ।आपको ये बताने की सारी शक्ति आप में ही समहित हैं ।आप क्या करते हैं । मुझे सम्मान मुझे पूजते हैं । मुझे शक्ति मांगने लगते हैं । भती भती की इच्छाएं मेरे सामने रखते हैं । मुझे आपकी श्रद्धा से कोई आपत्ति नहीं हैं । मुझे आपत्ति हैं उस भाव से जो आपको दुर्बल बनता हैं । परमात्मा में श्रद्धा रखिये । किंतु स्वयं की आत्मा में भी विश्वास किजीए । क्योकिं संसार में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जो आप नहीं कर सकते हर नर में नारायण बसते हैं और हर नारी में लक्ष्मी तो पहचानीये अपने भीतर के नारायण को और बदल दीजिए इस समय के चक्र को मुझे प्रसन्नता होगी की मेरे अवतार लेने का वास्तविक प्ररियोजन आपको समझ आये तो शख त्याग कर शंकर बना जाईये । अन्यथा ककड़़ के समान रहना होगा ।
Shree krishna |
श्री कृष्ण के द्वारा क्रोध की परिभाषा
:- जब दो व्यक्ति एक दुसरे के निकट आते है । तो एक दुसरे के लिए सीमाये और मर्यादायें निर्मित करने का पर्यन्त करते हैं, हम यदि सारे संबन्धो पर विचार करें तो देखेगें की सारे संबन्धो का आधार सही सीमाये हैं । जो हम दूसरो के लिए निर्मित करते हैं और यदि अनजाने में भी कोई व्यक्ति इन सीमाओं को तोड़ता हैं तो क्षण हमारा हृदय क्रोध से भर जाता हैं । किंतु इन सीमाओं का वास्तविक रुप क्या हैं । सीमाओं के द्वारा हम दुसरे व्यक्ति को निर्णय करने की अनुमति नहीं देते । अपना निर्णय उस व्यक्ति पर थोंपते हैं । अर्थात किसी की स्वतंत्रता का अस्वीकार करते हैं और जब स्वतंत्रता का अस्वीकार किया जाता हैं । तो उस व्यक्ति का हृदय दुख से भर जाता हैं और जब वो सीमाओं को तोड़ता हैं तो हमारा मन क्रोध से भर जाता हैं । क्या ऐसा नहीं होता पर यदि एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाये तो किसी मर्यादाओं या सीमाओ की आवश्यकता ही नहीं होती ।
अर्थात जिस प्रकार स्वीकार किसी संबंध की आत्मा नहीं
स्वंय विचार किजीए
Radhakrishna |
श्री कृष्ण के द्वारा प्रेम की परिभाषा
: - जब भी प्रेम की बात आती हैं । हम सब से पहले मन में एक नायक और एक नाईका का चित्रण कर लेते हैं । क्यों
आपके साथ भी यही होता हैं ना पर क्या प्रेम केवल नायक नाईका के आकर्षण का बन्धन हैं । नहीं
प्रेम तो परिवार से हो सकता हैं । माता-पिता भाई बहन से हो सकता हैं । शक मित्रों से हो सकता हैं । देश और जन्मभूमि के लिए हो सकता हैं । मानवता के लिए हो सकता हैं । किसी कला के लिए हो सकता हैं । इस प्रकृति के लिए हो सकता हैं । पर प्रेम कभी उस पन्ने पर लिखाई नहीं जा सकता । जिस पर पहले ही बहुत कुछ लिखा हो
जैसे एक भरी मटकी में और पानी आ ही नहीं सकता ।
यदि प्रेम को पाना हैं तो मन को खाली करना होगा । अपनी इच्छाऐ अपना सुख सब त्याग कर समर्पण करना होगा । अपने मन से व्यापार हट के तभी प्यार मिलेगा और मन प्रंसन होकर बोलेगा राधे राधे
और Motivatisional Speech पड़ने के
लिए इसे open करें
मित्रों , यह Shree Krishna ke updesh आप सभी को केसे लगे । यदि यह उपदेश भाषण आपको अच्छा लगा तो आप इस हिंदी स्पीच को शेयर कर सकतें हैं । इसके अतिरिक्त आप अपना Comment दे सकतें हैं । और हमें Email भी कर सकतें हैं ।
यदि आपके पास Hindi में कोई Article या inspirational Story , Motivatisional speech, Hindi Quetes, या कोई और जानकारी हैं और यदि आप वह हमारे साथ शेयर करना चाहतें हैं । तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ हमें Email करें । हमारी Email ID हैं । Raghavprajapati6711@gmail.com यदि आपकी Post हमें पसंद आती हैं । तो हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ अपने ब्लॉग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box